Posts

Showing posts from May, 2024

पंक्तियां.....~गुलज़ार साहब

 लैला अब नहीं थामती किसी बेरोजगार का हाथ,  मजनु को अगर इश्क है तो कमाना सीखें...!!                    ~ गुलज़ार साहब 

पंक्तियां.….(~अब्राहिम लिंकन)

  क़िताबें इन्सान को यह बताने के काम आती हैं  कि उसके मूल विचार आख़िरकार इतने नये भी नहीं हैं।           ~अब्राहिम लिंकन 

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों......(~गोपाल नीरज)

  छिप-छिप  अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है। सपना क्या है, नयन सेज पर  सोया हुआ आँख का पानी  और टूटना है उसका ज्यों  जागे कच्ची नींद जवानी  गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है। माला बिखर गयी तो क्या है  खुद ही हल हो गयी समस्या  आँसू गर नीलाम हुए तो  समझो पूरी हुई तपस्या  रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों  कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।  खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर  केवल जिल्द बदलती पोथी  जैसे रात उतार चांदनी पहने सुबह धूप की धोती  वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों! चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है। लाखों बार गगरियाँ फूटीं,  शिकन न आई पनघट पर,  लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर,  तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों! लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है। लूट लिया माली ने उपवन,  लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,...

पंक्तियां (~मुकेश मेघ)

  आप किसानों से किसान होने का सबूत माँगिए  हम पीछे से नारा लगाएँगे "भारत माता की जय" आप विद्यार्थियों से विद्यार्थी होने का सबूत माँगिए  हम पीछे से नारा लगाएँगे "भारत माता की जय" आप नागरिकों से भी नागरिक होने का सबूत माँगिए  हम फिर पीछे से नारा लगाएँगे "भारत माता की जय" यह नया हिंदुस्तान है  यहाँ सबूत आगे रहकर सवाल करने वालों से माँगे जाते हैं,  पीछे के नारे लगाने वालों से नहीं! ताकि, सवाल करना गुनाह बन जाए  और पीछे से नारे लगाना "वतन-परस्ती"                  ~ मुकेश मेघ

माँ.........

     माँ ईश्वर को मांओं ने जिंदा रखा है माँ विश्वास की असीम धारा है  माँ पर भरोसे के बिना  ईश्वर पर भरोसा करना असम्भव है।             ~मारुत नन्दन

माँ.......

  पिताजी गणित हैं, कठिन।  समझ में नहीं आते, लेकिन सत्य भी वही हैं। और माँ?  माँ, प्रेम है, साहित्य है। माँ, एक कहानी सुनाती है, जो कि काल्पनिक है।  जिससे हम सीखते हैं सत्य और  समझने लगते हैं गणित।          ~देवेंद्र पांडेय/hindi.panktiyaan 

लोकतंत्र

  किसी भी, देश के लोकतंत्र का नया अध्याय  तानाशाही के अंत से शुरू होता है  यानी कि,  लोकतंत्र ख़त्म करता है तानाशाही * लेकिन, लोकतंत्र भारत के संदर्भ में  तानाशाही को ख़त्म नहीं करता  लोकतंत्र भारत के संदर्भ में  तानाशाही को महज़ कम करता है * तानाशाह,  दानव जैसा होता है ! * और, भारत में इसका मुक़ाबला करने की  कोशिश कर रहा है, एक बीमार मानव जैसा कमज़ोर लोकतंत्र । * आज, भारत का आम आदमी  मूलभूत सुविधाओं के लिए  जी नहीं रहा,  बल्कि जंग लड़ रहा है! * उसके पेट में रोटी नहीं है  उसमें ताकत नहीं है  और आप चाहते हैं कि  वह लोकतंत्र की बात करें तानाशाह से लड़ें ! * हालाँकि,  आज वही हालात हैं जिनमें लोकतंत्र की बात की जाती है * मगर, तानाशाह ने आम आदमी का जो हाल कर रखा है  वहाँ रोटी के आगे और कुछ दिखता ही नहीं है * कैसे भी करके जीवन बसर करने की  चुनौती इतनी बड़ी है आज कि आम आदमी की सोच पर यहीं पूर्ण विराम लग जाता है * भारत में,  तानाशाह का एक नया वेरिएंट है  जो क्रूर होने के साथ ही बहुत शातिर और चाला...