थोड़ा कुछ तो रह जाता है। अंतिम ख्वाहिश छूते छूते, उम्र का दरिया बह जाता है.. अपने हाथ भले सब हो पर, थोड़ा कुछ तो रह जाता है। दिए ने भी एक बार सुना है, सूरज बनने की ठानी थी.. सूरज का पट आते आते, दिया अकेला रह जाता है। अंतिम ख्वाहिश छूते छूते, उम्र का दरिया बह जाता है.. अपने हाथ भले सब हो पर, थोड़ा कुछ तो रह जाता है।...2 आज का पल है संग तुम्हारे, तुम हो इसके जगमग तारे.. आज का उत्सव आज रहेगा, कल तो होगा कल का प्यारे.. आज अगर कल पर टाला तो, आज हमारा मर जाता है। अंतिम ख्वाहिश छूते छूते, उम्र का दरिया बह जाता है। अपने हाथ भले सब हो पर, थोड़ा कुछ तो रह जाता है। दिए ने भी एक बार सुना है, सूरज बनने की ठानी थी.. सूरज का पट आते आते, दिया अकेला रह जाता है। अंतिम ख्वाहिश छूते छूते, उम्र का दरिया बह जाता है.. अपने हाथ भले सब हो पर, थोड़ा कुछ तो रह जाता है। ~ Kavi Sandeep Dwivedi / Hindi pravah