मृत्यु और हँसी

 

किताब -- मृत्यु और हँसी



किताब -- मृत्यु और हँसी


लेखक -- प्रदीप अवस्थी 

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स्वयं लेखक के शब्द👇

पहली किताब। पहला उपन्यास।


ख़बर यह है दोस्तों कि मेरा पहला उपन्यास 'मृत्यु और हँसी' राजकमल प्रकाशन से आ रहा है।


अब जब यह आ रहा है तो लगता है कि मेरे ज़िन्दा होने का सबूत है यह किताब। मैं हिंदी साहित्य के किनारों पर कहीं बसा हूँ। वहीं बसा रहना चाहता हूँ। खुद से जुड़े रहने के तरीके के रूप में लिखना शुरू हुआ और ख़ुद से जुड़े रहना ही मुझे ज़िन्दा रखता है। मैं सोचता हूँ और पाता हूँ कि मेरी जड़ें कहीं नहीं हैं। इसलिए सब कुछ मुझे अपने भीतर ही ढूँढ़ना पड़ता है। मैं कभी किसी शहर को अपना नहीं कह पाया, किसी गाँव को भी नहीं। कुछ लोग हैं बस मेरे अपने। इतने अपने कि रोज़ रात को सोने से पहले उनका चेहरा आँखों के सामने आकर ठहर जाता है।


मेरी हर किताब में माँ होगी या किरदार होगा किसी माँ का। पिता कहीं-कहीं होंगे जैसे जीवन में रहे और उनके खो जाने का दुःख होगा। मुझे लगता रहा कि देर हो गयी। मैं लेट हो गया। इसलिए बहुत तेज़ दौड़ना होगा। दौड़ा भी। फिर दिमाग़ ने बीच-बीच में साथ देना छोड़ा। रफ़्तार धीमी हुई। अकेलापन रास आने लगा। बल्कि अकेले रहना अच्छा लगने लगा। क्या करना है, क्या नहीं, किस रास्ते जाना है, किस रास्ते नहीं, ख़ुद को यह याद दिलाए रखने के लिए भी ज़रूरी था बहुत सारा समय सिर्फ़ अपने साथ बिताना।


याददाश्त अजीब खेल खेलती है। यथार्थ और भ्रम भी। घटनाएँ जैसे होती हैं और जैसे हम उन्हें याद रखते हैं, हमें पता भी नहीं चलता कब इन मे अंतर आने लगता है। सब कुछ अपने भीतर समतल करते हुए चलना पड़ता है। ख़ुद को ख़ुद ही सम्भालना होता है।


मैंने तय किया कि मेरे किरदार वो करेंगे जो मैं नहीं कर पाया। उन रास्तों पर चलेंगे जिन पर मैं नहीं चल पाया। कहीं-कहीं ही सही, लेकिन पूरी हिम्मत के साथ बोलेंगे। अंधेरे से उबरने की शुरुआत थी यह उपन्यास।


कभी कुछ फ़िल्में बहुत असर छोड़तीं, कभी कोई किताब। एक ही घटना को लोग कितने अलग तरीक़ों से देखते हैं। सबका अपना सच होता है। लेकिन सच का कोई सबूत नहीं होता। यह उपन्यास लिखना ख़ुद को एक्सप्लोर करने जैसा भी था। एक बीमारी भी होगी जिसका ज़िक़ होगा हमेशा ही मेरे लिखे में शायद। मैं बच नहीं पाऊँगा उससे ऐसा लगने लगा है। बड़ों की दुनिया को देखते, उसे समझने की कोशिश में उससे ज़ख़्मी होते बच्चे भी होंगे। वे देख रहे हैं। देखकर सीख रहे हैं। वे चोटिल होंगे, तो उनके सवाल भी होंगे, उनका रोष भी होगा।

           ~प्रदीप अवस्थी 

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~Hindi pravah 


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