उम्मीद.....

 उम्मीद...

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी

तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है


बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता

वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू क्या है

                                 ~मिर्जा गालिब 

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